
मुंबई में रहने वाले धर्मेंद्र कर, एक पर्यावरण संरक्षक हैं। उन्होंने ओडिशा और मुंबई में, अब तक 8000 से ज्यादा पेड़-पौधे लगवाए हैं और मुंबई की खारघर झील को साफ करके संरक्षित किया है। इसके लिए, उन्हें ‘वाटर हीरो 2020’ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।
‘कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी’ (CSR) के बारे में तो आपने सुना होगा। लेकिन, क्या कभी आपने ‘इंडिविजुअल सोशल रिस्पांसिबिलिटी’ (ISR) मतलब ‘व्यक्तिगत सामाजिक उत्तरदायित्व’ के बारे में सुना है? इसका मतलब है, कोई आम इंसान व्यक्तिगत स्तर पर समाज और पर्यावरण के प्रति अपना उत्तरदायित्व निभाए। ठीक वैसे ही, जैसे नवी मुंबई में रहने वाले ‘ग्रीन वॉरियर’ (Green Warrior) धर्मेंद्र कर, पर्यावरण के प्रति अपना हर उत्तरदायित्व निभा रहे हैं। उन्होंने ही यह अनोखा ‘कॉन्सेप्ट’ शुरू किया है, जिसके अंतर्गत वह न सिर्फ खुद समाज तथा पर्यावरण में सकारात्मक बदलाव ला रहे हैं बल्कि दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
टेक महिंद्रा कंपनी में बतौर डाटा साइंटिस्ट काम कर रहे धर्मेंद्र, मूल रूप से ओडिशा के जाजपुर ब्लॉक के रहने वाले हैं। बचपन से ही प्रकृति के बीच पले-बढ़े धर्मेंद्र, प्रकृति और समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व को काफी अच्छे से समझते हैं। उनका कहना है, “समस्याओं को हल करने की शुरुआत जड़ से होनी चाहिए। किसी भी परेशानी के लिए हम सरकार और प्रशासन को दोषी ठहराते हैं लेकिन, कभी खुद की जिम्मेदारियां नहीं समझते। सड़कों पर लगे कचरे के ढेर को देखकर, हम नगर निगम को दोषी ठहराते हैं लेकिन, क्या हमने कभी अपने घरों से निकलने वाले कचरे पर गौर किया है? अगर हम सब खुद से शुरुआत करेंगे तो बहुत सी समस्याओं को हल कर पाएंगे।”

धर्मेंद्र लगभग 20 सालों से अपने इस उत्तरदायित्व को निभाने में जुटे हुए हैं। अपनी नौकरी और घर-परिवार की जिम्मेदारियों को संभालते हुए, वह लगातार पर्यावरण के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने न सिर्फ मुंबई में बल्कि ओडिशा में अपने ब्लॉक में भी बड़े स्तर पर काम किया है। अपने इस सफर के बारे में बात करते हुए उन्होंने बताया, “मैं पढ़ाई के बाद नौकरी करने के लिए, ओडिशा के बाहर ही रहा। लेकिन, इस वजह से मैं अपने लोगों के प्रति अपनी जिम्मेदारियां नहीं भूल सकता हूँ। मैं हर साल बारिश के मौसम से पहले 15-20 दिन की छुट्टियां लेकर, अपने घर जाता हूँ और वहां लोगों के साथ मिलकर पौधारोपण करता हूँ। हमारे लगाए हुए बहुत से पौधे, आज पेड़ बनकर समाज के काम आ रहे हैं।”
लगाए 5000 से ज्यादा पेड़-पौधे
धर्मेंद्र अपने गाँव और आसपास के इलाकों में, पिछले 20 सालों से लगातार पौधारोपण कर रहे हैं। वह बताते हैं, “शुरुआत में, मैं खुद ही अपने घर के आसपास की खाली जगहों पर पौधे लगाता था तथा उनकी देखभाल करता था। धीरे-धीरे और भी कई लोग इस काम से जुड़ने लगे। अब हमारी टीम काफी बड़ी हो गयी है और हर साल बारिश से पहले, हम किसी जगह का चुनाव करके पौधारोपण की तैयारी करते हैं। पौधे लाकर, लगाने से लेकर उनकी देखभाल तक, सभी काम लोगों के सहयोग से होते हैं।”
उन्होंने अब तक ओडिशा में पांच हजार से ज्यादा पेड़-पौधे लगाए हैं। उनके लगाए लगभग सभी पेड़ सही-सलामत हैं। उनका कहना है कि पौधे लगाने का फायदा तभी है, जब आप उनकी पूरी देखभाल करें। अगर पौधे लगाकर आप उनकी देखभाल ही न करें और वे सूख जाएं तो इसका कोई फायदा नहीं। इसलिए वह जहाँ भी जाते हैं, बाकी लोगों को भी प्रकृति के प्रति जागरूक और संवेदनशील बनाते हैं। वह खासकर युवाओं को इस काम से जोड़ रहे हैं ताकि आने वाले समय में, वे पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारियां अच्छे से निभाएं।

उन्होंने जाजपुर ब्लॉक के मुगपल और मधुबन में स्थित एक हाई स्कूल में भी 500 से ज्यादा पेड़ लगाए हैं। सोशल मीडिया के जरिए भी उनसे बहुत से लोग जुड़े हुए हैं। जाजपुर के बामदेईपुर (Bamadeipur) के रहने वाले रिपुन जॉय कहते हैं, “मैं धर्मेंद्र जी से सोशल मीडिया के जरिये जुड़ा हुआ हूँ। उनका काम सराहनीय है और उनसे प्रेरित होकर मैंने और मेरे कुछ साथियों ने मिलकर, हमारे गाँव में हजार से ज्यादा पेड़-पौधे लगाए हैं और इनकी देखभाल कर रहे हैं।”
धर्मेंद्र आगे कहते हैं, “मैंने साल 2014-15 तक ज्यादातर काम ओडिशा में ही किया। इसके बाद, मुझे सरकार के स्वच्छता और जल अभियानों के बारे में पता चला, जिनसे मैं काफी प्रभावित हुआ। मुझे लगा कि मैं जहाँ रहता हूँ, उस क्षेत्र के लिए भी मेरा कुछ उत्तरदायित्व है। इसलिए, मैंने मुंबई में भी पौधारोपण की शुरुआत की।”
उन्होंने साल 2016 में खारघर, नवी मुंबई में पौधारोपण अभियान शुरू किया और साल 2020 तक, उन्होंने यहाँ तीन हजार से ज्यादा पेड़-पौधे लगाएं हैं। वह अब नियमित रूप से इन पेड़-पौधों की देखभाल करते हैं और इस साल के पौधारोपण अभियान की तैयारियों में जुटे हुए हैं। वह बताते हैं कि मॉनसून से पहले का मौसम पौधारोपण के लिए, सबसे अच्छा होता हैं। इसलिए, वह मॉनसून से पहले ही पौधारोपण कर लेते हैं।

वह कहते हैं, “मेरा काम करने का तरीका बहुत ही सरल है। मैं खुद से शुरुआत करता हूँ। अगर मुझे कहीं कचरा दिखता है तो मैं खुद उसे साफ करता हूँ। सड़क किनारे पेड़-पौधे मुरझाये से दिखते हैं तो मैं उनकी भी देखभाल करता हूँ। मैं अपनी कंपनी में भी विशेष आयोजनों के दौरान, कैंपस में हमेशा पौधे लगाता हूँ और फिर इनकी देखभाल करता हूँ।”
खारघर झील को दी नयी जिंदगी
पौधारोपण के अलावा, उन्होंने खारघर झील को पुनर्जीवित करने में भी अहम भूमिका निभाई है। धर्मेंद्र बताते हैं, “मैं 2018 में ‘दादर बीच क्लीनिंग ड्राइव’ में गया था। हमने समुद्र तट की साफ-सफाई की। लेकिन, फिर मुझे लगने लगा कि हम छोटे स्तर पर काम करने की बात क्यों नहीं सोचते हैं? समुद्र में गंदगी, नदी-नाले, झील और तालाब से होते हुए ही पहुँचती है। इसलिए, हमें पहले उनकी साफ़-सफाई पर ध्यान देना चाहिए। हमें नींव से शुरुआत करनी चाहिए ताकि हम समस्या का पूरी तरह से समाधान कर सकें और इसलिए, मैंने खारघर झील पर ध्यान देना शुरू किया। यहाँ की हालत बहुत ही खराब थी।”
साल 2018 में धर्मेंद्र ने इस झील की साफ-सफाई का बीड़ा उठाया। उनके इस अभियान में उनके एक और साथी, अमरनाथ सिंह भी उनके साथ जुड़ गए। वे दोनों हर शनिवार और रविवार, दो घंटे लगाकर झील से कचरा निकालते थे। वे जानते थे कि यह एक-दो दिन का काम नहीं है लेकिन, उन्होंने पीछे हटने के बारे में नहीं सोचा।

अमरनाथ सिंह बताते हैं कि झील के किनारे लोगों ने कूड़े का ढेर लगा दिया था। लेकिन, जब उन्होंने सफाई शुरू की तो और भी कई लोग उनका हाथ बंटाने के लिए, आगे आने लगे। उनकी मेहनत को देखकर, इलाके के नगर निगम कर्मचारी भी उनसे काफी प्रभावित हुए।
अमरनाथ ने बताया, “देखते ही देखते सैकड़ों लोग हमारे साथ जुड़ गए और दो साल के लगातार प्रयासों के बाद, यह झील आखिरकार साफ़ और स्वच्छ हो गयी। झील की सफाई के साथ-साथ हमने पौधारोपण भी किया। साथ ही, लोगों से यहाँ कचरा न फेंकने की गुजारिश की।” उनके इस काम को जल मंत्रालय द्वारा भी सराहना मिली है और धर्मेंद्र को ‘वाटर हीरो 2020’ पुरस्कार से नवाजा गया।
आर्थिक योगदान
धर्मेंद्र इन सभी कार्यों के लिए, हर महीने अपनी कमाई का 20% हिस्सा लगाते हैं। उनका कहना है कि यही उनका ‘आईएसआर’ सिद्धांत है कि वह अपने स्तर पर समाज और पर्यावरण के लिए, अपनी कमाई का 20% हिस्सा और हर दिन दो घंटे का समय इस कार्य को देंगे। वह कहते हैं, “मैं जो भी काम कर रहा हूँ, वह दूसरों के लिए नहीं है बल्कि मेरे लिए है। अगर मैं पेड़ लगाता हूँ तो मुझे स्वच्छ हवा मिल रही है। अगर पानी के स्रोत साफ हैं तो मुझे स्वच्छ पानी मिलेगा। बायोडाइवर्सिटी बढ़ेगी तो एक संतुलन बनेगा, जो मानव जीवन के लिए बहुत ही लाभकारी होगा।”

अब वह लगातार अपने साथियों के साथ मिलकर ‘सीड बॉल’ बनाते हैं। उन्होंने अब तक लगभग एक लाख ‘सीड बॉल’ बनाकर अलग-अलग जगहों पर डालें हैं ताकि हरियाली बढ़ सके। देशभर से, उनके जैसी सोच रखने वाले बहुत से लोग उनसे जुड़े हुए हैं। इन लोगों को साथ में लेकर उन्होंने एक ‘सुपर 30’ टीम बनाई है ताकि अलग-अलग जगह, लोग इस तरह के अभियान शुरू कर सकें।
अंत में वह कहते हैं, “अगर आपने अपनी जिम्मेदारी को समझ लिया है तो आपको किसी और पर निर्भर होने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसलिए शुरुआत खुद से करें। क्योंकि, जब हम सभी अपनी-अपनी जिम्मेदारियां अच्छे से निभाएंगे तो बदलाव खुद-ब-खुद आने लगेगा।”