राजस्थान के किराड़ू को “राजस्थान का खजुराहो” कहते हैं। बाड़मेर में स्थित किराड़ू अपनी शिल्प कला के लिए विख्यात है। कहा जाता है कि किराडू के मंदिरों का निर्माण 11वीं सदी में हुआ था, लेकिन इस स्थान को कभी भी खजुराहो जैसी ख्याति नहीं मिल सकी। कहा जाता है कि इसकी वजह यहां का वीरानापन है।
यह स्थान पिछले 900 सालों से वीरान है। यहां दिन में थोड़ी-बहुत चहल-पहल जरूर होती है, लेकिन सूर्यास्त के बाद यहां कोई नहीं रुकता।
इतिहासकार कहते हैं कि किराड़ू शहर अपने समय में बेहद व्यवस्थित नगर था। 12वीं सदी में यहां परमार वंश के शासक राज करते थे। हालांकि, बाद में यह नगर वीरान हो गया। आखिर ऐसा क्यों हुआ, इसकी कोई लिखित जानकारी नहीं मिलती है।
हालांकि, इस संबंध में एक दंतकथा प्रचलित है। दंतकथा के मुताबिक, इस शहर को एक साधु का श्राप लगा है।कथा कुछ इस तरह है। करीब 900 साल पहले परमार राजवंश के शासनकाल में इस नगर में एक ज्ञानी साधु रहने के लिए आए। यहां पर कुछ दिन बिताने के बाद साधु देश भ्रमण पर निकले, तो उन्होंने अपने साथियों को स्थानीय लोगों के सहारे छोड़ दिया। क्रमशः उनके शिष्य बीमार पड़ने लगे। इस दौरान शिष्यों की देखभाल एक कुम्हारिन ने की थी। साधु जब वापस आए तो वस्तुस्थिति जानकर बुरा लगा। उन्होंने कहा कि जिस स्थान पर दया भाव ही नहीं है, वहां मानवजाति को भी नहीं होना चाहिए। साधु ने सभी नगरवासियों को पत्थर का बन जाने का श्राप दे डाला। जिस कुम्हारिन ने साधु के शिष्यों की सेवा की थी, उसे साधु ने शाम होने से पहले चले जाने को कहा, साथ ही यह भी कहा कि वह पीछे मुड़कर न देखे, अन्यथा वह भी पत्थर की बन जाएगी। हालांकि, कुछ दूर जाने के बाद कुम्हारिन ने पीछे मुड़कर देखा और वह भी पत्थर की बन गई।”मान्यता है कि इस श्राप की वजह से यहां शाम ढ़लने के बाद रहने वाला व्यक्ति पत्थर का बन जाता है।
हालांकि, इतिहासकार इस दंतकथा से इतर अन्य साक्ष्य भी देते हैं। कुछ इतिहासकार कहते हैं कि मुगलों के आक्रमण की वजह से किराड़ू वीरान हुए थे। हालांकि, इतिहासकार यह भी कहते हैं कि मुगलों के हमले 14वीं सदी में शुरू हुए, जबकि किराड़ू में वीरानी 12वीं सदी से ही छाई हुई है।यहां के मंदिरों के निर्माण के काल के संबंध में कोई ठोस जानकारी नहीं है।
यहां के मंदिरों से संबंधित तीन शिलालेख मौजूद हैं। हालांकि, उन पर भी इनके निर्माण से संबंधित जानकारी नहीं हैं। कई इतिहासकार इन मंदिरों को 11वीं सदी में निर्मित बताते हैं। कहा जाता है कि इनका निर्माण परमार वंश के राजा दुलशालराज और उनके वंशजों ने किया था।
किराडू में किसी समय पांच भव्य मंदिरों की एक श्रृंखला थी। आज इन पांच मंदिरों में से केवल विष्णु मंदिर और सोमेश्वर मंदिर ही ठीक हालत में हैं।
भगवान शिव को समर्पित सोमेश्वर मंदिर की बनावट बेहद दर्शनीय है। यह कई खंभों पर टिका है। इसके भीतरी भाग में बना भगवान शिव का मंडप भी बेहतरीन है।
विष्णु मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। यह मंदिर आकार में सोमेश्वर मंदिर से छोटा है, लेकिन स्थापत्य व कलात्मक दृष्टि से बेहद समृद्ध है। किराड़ू के तीन अन्य मंदिर खंडहर में तब्दील हो चुके हैं। इसके बावजूद ये भी देखने लायक हैं।