भारत की सबसे बड़ी बीमारी,काम वासना

 हमें बचपन से ही कुछ इस तरह के संस्कार दिए जाते हैं कि हम न तो अपने शरीर के अंगों के बारे में ठीक से जान पाते हैं और ना ही किसी से पूछ पाते हैं। जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं हम अपने शरीर के बारे में खुद से ही जानना शुरू करते हैं। घर में जब भी कोई बड़े अपने में मजाक करती हैं हमें तुरंत वहां से हटा दिया जाता है। कुल मिलाकर हमें पता ही नहीं होता है कि हमारे जननांगों का काम क्या है, क्या होती हैं, उनका मतलब क्या होता है और दुनिया में नए जीव की उत्पत्ति कैसे होती है।

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बड़े होने पर जैसे ही हमें अपने शरीर के बारे में थोड़ी जानकारी प्राप्त होती है हम उसके बारे में और ज्यादा जानने के लिए उत्तेजित होने लगते हैं। इस तरह देखा जाए तो भारत जैसे देश में कामवासना लोगों में एक कुंठा की तरह विकसित हो रही है। इंटरनेट के बेतहाशा उपयोग और टेक्नोलॉजी के आने और विचारों में खुलापन होने के बाद हमसे जो चीजें पहले छुपाकर रखी जाती थी आज हम वो खुलेआम कर रहे हैं।

एक स्टडी के अनुसार भारत में सौ में से नब्बे व्यक्ति कामवासना का शिकार है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि ऐसे लोगों को पता ही नहीं है कि यह समस्या वास्तव में समस्या है या नहीं। वे दिन-रात उसी में डूबते उतरते रहते हैं। बस उन्हें मौका चाहिए और वे बाते करना शुरू कर देते हैं। भारत में बढ़ती बलात्कार की घटनाओं से यह साबित होता है कि कामवासना से ग्रसित व्यक्ति किसी भी हद तक जा सकता है।

आइये जाने कि कामवासना से ग्रसित व्यक्ति के क्या लक्षण होते हैं-

अगर आप महिला है तो अपने आसपास के पुरुषों के हावभाव पर ध्यान रखिए। बस में सफर करते वक्त या भीड़-भाड़ वाली जगहों पर वे आप को छूने की भरपूर कोशिश करते हैं। ऐसे व्यक्ति कामवासना के शिकार होते हैं और उनमें यह किसी बीमारी की तरह होती है। इससे वे अपना नुकसान तो करते ही हैं और भरी जगह पर दूसरों का भी नुकसान पहुंचाते हैं।

आए दिन अखबारों में पढ़ने को मिलता है कि महिलाएं और लड़कियां अपने बचपन में अपने ही रिश्तेदारों से हिंसा का शिकार हुई रहती हैं। वास्तव में हमारे ही घर में रहने वाले चाचा, भाई और रिश्तेदार और पड़ोसी कामवासना के इतने बुरे शिकार होते हैं कि वह छोटी बच्ची को भी नहीं छोड़ते और मौका मिलते ही उसपर झपट पड़ते हैं।

आज के समय में कामवासना एक मनोविकार बनती जा रही है। बड़ा हो या बूढ़ा हर कोई कामवासना से ग्रसित है। हमें उम्मीद भी नहीं होती और राह चलते कोई बूढ़ा हमे आंख मार देता है। दुकान पर कोई सामान देते वक्त हाथ पकड़ लेता है और जब भी मौका मिलता है महिलाओं पर कसकर अपनी कुंठा निकालता है।

ऐसा नहीं है कि सिर्फ पुरुष ही कामवासना के शिकार है। महिलाएं भी इस समस्या से ग्रस्त हैं। चूंकि महिलाओं को हमेशा पर्दे में रखा जाता है और पुरूष के आगे पहल करने की इजाजत बचपन से नहीं दी जाती इसलिए ज्यादातर महिलाएं अपनी इस कुंठा को दबाकर रखती हैं। पुरुष कहीं भी किसी के भी साथ अपनी इच्छा पूरी कर लेती हैं लेकिन महिला संस्कारों में जकड़ी होती है और जीवन भर अपनी कामवासना लेकर कुंठित होती रहती हैं।

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